(1) बिहार के राज्यपाल कुलाधिपति होंगे और अपने पद के आधार पर विश्वविद्यालय के प्रमुख और सीनेट के अध्यक्ष होंगे तथा उपस्थित रहने पर विश्वविद्यालय के किसी भी दीक्षांत समारोह तथा सीनेट की बैठकों की अध्यक्षता करेंगे।
(2) कुलाधिपति को विश्वविद्यालय, इसकी इमारतें, प्रयोगशालाएँ, कार्यशालाएँ एवं उपकरण, किसी महाविद्यालय या छात्रावास, संचालित अध्यापन या परीक्षाएँ अथवा विश्वविद्यालय द्वारा किये गये किसी कार्य के निरीक्षण की और विश्वविद्यालय से संबंधित किसी मामले की बाबत ऐसे व्यक्ति या व्यक्तियों, जिसे उसी प्रकार से जाँच करने या करवाने के लिए निदेशित किए जाएँ, द्वारा ऐसे निरीक्षण करवाने की शक्ति होगी [तथा इस तरह के निरीक्षण में आवश्यक सहायता प्रदान करवाना संबंधित विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालय के पदाधिकारियों का कर्त्तव्य होगाः]
परन्तु कुलाधिपति प्रत्येक मामले में कुलपति को निरीक्षण करने या पूछताछ करने का निरीक्षण जांच करवाने के अपने इरादे से अवगत करवाएंगें तथा विश्वविद्यालय उसमें प्रतिनिधित्व का हकदार होगा।
(3) (क) कुलाधिपति ऐसे निरीक्षण या जांच परिणाम कुलपति को भेज सकते हैं और कुलपति कुलाधिपति के विचारों को सिंडिकेट और अकादमिक परिषद को संप्रेषित करेंगे।
(ख) ऐसे निरीक्षण या जाँच के परिणामों पर यदि किसी प्रकार की कार्रवाई की गयी है या प्रस्तावित है तब सिंडिकेट अथवा अकादमिक परिषद् इसका प्रतिवेदन निर्दिष्ट समय के भीतर कुलाधिपति को रिपोर्ट करेंगे।
(ग) जहां सिंडिकेट और अकादमिक परिषद एक उचित समय के भीतर कुलाधिपति की संतुष्टि तक कार्रवाई करने में विफल रहते हैं, तो कुलाधिपति सिंडिकेट या अकादमिक परिषद् द्वारा किए गये स्पष्टीकरण अथवा दाखिल अभ्यावेदन पर विचार करने के पश्चात् ऐसा निदेश, जिसे वह उचित समझे, दे सकेगा तथा सिंडिकेट एवं अकादमिक परिषद् उसका तत्काल अनुपालन करेगा।
[परन्तु उपधारा (3) में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी कुलाधिपति, यदि वह आवश्यक समझे, कुलपति से प्राप्त प्रतिवेदन (रिपोर्ट) के आधार पर या अन्यथा विश्वविद्यालय या उनसे संबंधित महाविद्यालयों के किसी शिक्षक अथवा पदाधिकारी से स्पष्टीकरण मांग सकते हैं और आरापों पर विचार करने के बाद वह जैसा उचित समझे वैसा निदेश जारी सकते हैं, और यथास्थिति कुलपति, सिंडिकेट और अकादमिक परिषद् या शासी निकाय या तदर्थ समिति, जैसा भी मामला हो, विनिर्दिष्ट अवधि के भीतर इसका अनुपालन करेंगे ।
(4) कुलाधिपति लिखित में आदेश द्वारा विश्वविद्यालय की किसी भी कार्यवाही या आदेश को निष्प्रभावी कर सकते हैं, जो इस अधिनियम, परिनियम, अध्यादेश या विनियम के अनुरूप नहीं है अथवा जिसके लिए पर्याप्त कारण का अभाव है।
परन्तु ऐसा कोई आदेश या निदेश देने के पहले वह विश्वविद्यालय को कारण बताने के लिए कहेंगे कि विनिर्दिष्ट समय के भीतर ऐसा आदेश अथवा निदेश क्यों नहीं दिया जाना चाहिए, और यदि कोई कारण उक्त समय सीमा के भीतर दिखाया जाता है तब वह उस पर विचार करेंगे ।
(4)(क) कुलाधिपति अपने द्वारा पारित किसी भी आदेश को पुनर्विलोपित कर सकेंगे अथवा वापस ले सकेंगे यदि वह ऐसा पुनर्विलोपन या वापसी न्याय की दृष्टि से उचित समझे अथवा अभिलेखों के आधार पर पूर्व में पारित आदेश को गलत पायें ।
(5) मानद उपाधि देने के लिए हरेक प्रस्ताव कुलाधिपति की संपुष्टि के अधीन होगा।
(6)जहां इस अधिनियम या विश्वविद्यालय के प्राधिकारियों और निकायों के लिए व्यक्तियों को नामित करने के परिनियम द्वारा उसे शक्ति प्रदत्त है कुलाधिपति आवश्यकता की हद तक ऐसी शक्ति पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना ऐसे हित जो अन्यथा प्रस्तुत नहीं किए गए हैं, को प्रस्तुत करने के लिए व्यक्तियों को नामित करेंगे।
(7)(i) कुलाधिपति के पास विश्वविद्यालयों के पदाधिकारियों तथा शिक्षकों को एक विश्वविद्यालय से दूसरे विश्वविद्यालय अथवा उसी विश्वविद्यालय में उसी पद पर या किसी अन्य समकक्ष पद पर स्थानांतरित करने की शक्ति होगी, स्थानांतरित होनेवाले अपनी-अपनी वरीयता बनाए रखेंगे।
(ii) कुलाधिपति को विश्वविद्यालयों के प्रशासनिक अथवा अकादमिक हित में विश्वविद्यालयों को निर्देश जारी करने की शक्ति होगी, जिसे वे आवश्यक समझे। कुलाधिपति द्वारा जारी किया गया निदेश यथास्थिति कुलपति, सिंडिकेट, सीनेट तथा अन्य निकायों, द्वारा कार्यान्वित किया जाएगा।
(iii) कुलाधिपति के किसी आदेश से व्यथित कोई व्यक्ति कुलाधिपति के समक्ष अभ्यावेदन दे सकते हैं, जिसे अभ्यावेदन पर विचारोपरान्त अपने पूर्व के आदेश को अभिपुष्ट करने, उपांतरित करने या विखंडित करने की शक्ति होगी तथा वह ऐसा अन्य आदेश सकते हैं जो वह उपयुक्त तथा उचित समझे।
(8) कुलाधिपति को ऐसी अन्य शक्तियाँ होंगी जो इस अधिनियम अथवा परिनियम द्वारा उन्हें प्रदत्त हों।
विधायी परिवर्तन (1982 के बाद)-इस धारा की उपधारा 7 को अंतःस्थापित किया गया था, और मौजूदा उपधारा 7 को अध्यादेश 39, 1986 द्वारा उपधारा 8 के रूप में पुनः संख्यांकित किया गया जिसे उत्तरवर्ती अध्यादेशों द्वारा अधिनियम 3, 1990 के अधिनियमिति तक जारी रखा गया ।